गैंडास बुज़ुर्ग आत्मदाह मामला : हाईकोर्ट के निर्देश पर एसआईटी जांच समिति गठित, जल्द शुरू होगी मामले की जांच!

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योगेंद्र विश्वनाथ त्रिपाठी, संवाददाता 

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में थाने द्वारा दलित युवक के दावे वाली ज़मीन कब्ज़ा करने और उसके बाद युवक द्वारा आत्मदाह करने के मामले में अब हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पुलिसकर्मियों की संलिप्तता की जांच एसआईटी करेगी, जिसका उत्तर प्रदेश शासन स्तर से गठन कर दिया गया है. इस समिति में दो उच्च अधिकारियों को नियुक्त किया गया है. इसमें एक एडीजी रैंक के आईपीएस अधिकारी और राजस्व अधिकारी को नामित किया गया है. यह समिति हाईकोर्ट के निर्देशन में कार्य करेगी और जांच के उपरांत अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को बंद लिफ़ाफ़े में प्रस्तुत करेगी. मृतक दलित युवक की विधवा ने हाइकोर्ट ने रिट याचिका दायर करके इस मामले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग की थी, जिस पर लखनऊ खंडपीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिसकर्मियों व अन्य के संलिप्तता की जांच के लिए एसआईटी के गठन की संस्तुति की थी.

जानिए क्या है पूरा मामला

मामला बलरामपुर जिले के गैंडास बुजुर्ग थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. यही पास के धोबहा गांव के रहने वाले, दलित समाज से आने वाले राम बुझारत और उनके परिजनों के दावे वाली निर्माणाधीन थाने के पास एक प्लॉट था. उक्त प्लॉट का मामला सिविल न्यायालय में विचाराधीन था और न्यायालय ने उक्त जमीनी विवाद के मामले में कोर्ट कमीशन कर रखा था. 23/10/2023 को जब थाने के गेट से सटे प्लॉट पर निर्माण के लिए पिलर का गड्ढा खुदवाया जाने लगा तो राम बुझारत ने इस अवैध निर्माण को रोकने के लिए तत्काल एक एप्लीकेशन थानाध्यक्ष को दिया. उस दिन महानवमी का त्यौहार मनाया जा रहा था. उसके एक दिन बाद दशहरे के दिन यानी की 24/10/23 को जब पुलिसकर्मियों द्वारा तमाम लोगों की मिलीभगत के साथ थाने के निर्माणाधीन भवन से सटी, जमीन पर जब पिलर खड़ा कर दिया गया तो राम बुझारत बेहद परेशान हो गया. उसने वहीं पर फेसबुक लाइव करते हुए आत्मदाह करके आत्महत्या की कोशिश की.

6 दिन बाद हुई युवक की मौत

जमीन के एक टुकड़े के लिए आत्मदाह करने वाले राम बुझारत की मौत 6 दिन बाद हो गयी। उसका अंतिम संस्कार भी हो गया लेकिन उसके परिजनों, उसकी पत्नी व बच्चों को न्याय नहीं मिल सका और धीरे-धीरे पीड़ितों की पुलिस व स्थानीय प्रशासन द्वारा न्याय मिलने की उम्मीद भी मरने लगी. आखिरकार, राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी ने CRPC की धारा 156/3 के तहत न्यायालय में एक वाद दायर कर उक्त मामले में एफआईआर दर्ज करवाने की मांग की. जिला न्यायालय द्वारा मामले में राजस्वकर्मियों व अन्य के खिलाफ तो एफआईआर पंजीकृत किया गया. लेकिन पुलिसकर्मियों पर कतिपय कारणों से FIR नहीं पंजीकृत की गई.

इस मामले में हुए तमाम खेल

बताया जाता है कि निर्माणाधीन थाना भवन के गेट के बगल यानी बाहर विवादित भूमि पर पुलिस संरक्षण में हुए पिलर का निर्माण देखकर राम बुझारत सहम गया था. पुलिस की दबंगई से उसे अपनी दावे वाली पुश्तैनी जमीन अवैध रूप से कब्जा होकर उसके हाथ से चले जाने का डर उसके मन में बैठ गया था. इसी से आहत व छुब्ध होकर राम बुझारत ने आत्मदाह का रास्ता चुना. इस मामले में डीएम अरविंद सिंह के निर्देश पर अपर जिला अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक नमृता श्रीवास्तव मजिस्ट्रेट जांच की अनुशंसा पर थानाध्यक्ष के साथ ही कार्यदायी संस्था से जुड़े अधिकारियों और पीड़ितों का बयान दर्ज किया. बताया जाता है कि अपर पुलिस अधीक्षक नमृता श्रीवास्तव ने अपनी प्रारंभिक जांच में थाने के प्रभारी पवन कुमार कन्नौजिया को दोषी माना. बताया जाता है उन्हीं की अनुशंसा पर निलंबन की कार्रवाई की गई. लेकिन यह कार्रवाई उनपर व पुलिसकर्मियों पर पर्याप्त नहीं थी.

वहीं, दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर पुलिस के द्वारा किया गया खेल आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ था. थाना भवन का निर्माण कर रही कार्यादारी संस्था पुलिस आवास विकास निगम के अफसर की माने तो थानाध्यक्ष ने फोन करके पहले प्लॉट पर पिलर लगाने की बात कही थी. लेकिन थाना भवन के लेआउट से बाहर निर्माण का अधिकार न होने के कारण संस्था के लोगों ने इससे इनकार कर दिया था. इसके बावजूद विवादित जमीन पर पिलर का निर्माण कैसे हो गया, यह सवाल पुलिस व प्रशासन के उच्च अधिकारियों को परेशान कर रहा था.

न्याय की उम्मीद खो चुका था राम बुझारत

कहा जाता है कि पुलिस ने कार्यदाई संस्था लोगों व अन्य लोगों के साथ मिली भगत करते हुए राम बुझारत के दावे वाली जमीन पर अवैध निर्माण का टाइमिंग को भी बहुत सटीक ढंग चुना था. जिस दिन राम बुझारत के दावे वाली जमीन पर जेसीबी मशीन के माध्यम से पिलर खोदा गया था, उस दिन शनिवार था. उसके एक दिन बाद स्थानीय स्तर पर निर्माण की बात फैलने लगी थी. शनिवार, रविवार को अवकाश था. राम बुझारत ने सोमवार को थाना गैंडास बुजुर्ग पर इस बाबत शिकायती पत्र दिया और उसके दूसरे दिन दशहरे का त्यौहार था. थाने पर उसे करीब 3 घंटे तक बिठाए रखा गया. उसके बाद जब तमाम लोगों हस्तक्षेप किया तो उसे छोड़ा गया. लेकिन उससे कहा गया कि उक्त ज़मीन को पाने के लिए उसे कोर्ट से स्टे आर्डर लाना होगा. गौरतलब है कि 4 दिन छुट्टी होने के करण राम बुझारत को किसी तरह से स्टे आर्डर नहीं मिल सकता था.

कब्जा करवाकर मंहगे दाम बेचने का था प्लान

सूत्र बताते हैं, निर्माणाधीन थाने की जमीन के गेट के पास हो रहे इस अवैध निर्माण का मकसद दिया था कि छुट्टी के दिनों में राम बुझारत की पड़ी हुई जमीन पर अवैध रूप से पहले कब्जा कर लिया जाएगा. फिर आने वाले समय में कमर्शियल जमीन को महंगे दामों में बेच दिया जाएगा. लेकिन राम बुझारत को जब स्थानीय थाने के स्तर से न्याय मिलता नहीं दिखाई दिया तो उसमें आत्मदाह का प्रयास कर लिया. इस घटना में वह लगभग 60% झुलस गया था और और इस तरह से तत्कालीन थानाध्यक्ष समेत अन्य लोगों के अरमानों पर पानी फिर गया.

बताया जाता है कि थाना भवन का निर्माण निर्धारित डीपीआर के अनुसार हो चुका था. लेकिन थानाध्यक्ष व अन्य पुलिसकर्मियों द्वारा ठेकेदार व पुलिस आवास निगम के अधिकारियों तमाम जगहों पर की गई शिकायतों का निस्तारण न होने और स्थानीय स्तर व थाने पर सुनवाई न होने के कारण उसे मजबूरन यह कदम उठाना पड़ा. एसओ और ठेकेदार की देखरेख में थाना भवन का निर्माण हो रहा था. छुट्टी का दिन होने के कारण अधिकांश श्रमिक भी अवकाश पर थे और इसी दौरान सारा का सारा खेल किया गया.

जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने उठाया था कदम 

उक्त मामले में जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने मजिस्ट्रेट जांच में थानाध्यक्ष और पुलिसकर्मियों की भूमिका को संदिग्ध पाया और उसी समय 27/10/23 थानाध्यक्ष और अन्य पुलिसकर्मियों के विरूद्ध कानूनी आदेश पुलिस अधीक्षक को दिए, परन्तु 6 महीने बीतने के बाद भी जब पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं कि गई और राम बुझरत का परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकता रहा. तब मजबूरन जिला मजिस्ट्रेट अरविंद सिंह ने अपने कोर्ट से 35 पेज का न्यायिक आदेश 30/ 04/ 24 को पवन कन्नौजिया के विरूद्ध पारित किया और पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया कि थानाध्यक्ष व अन्य संलिप्त पुलिसकर्मियों के विरूद्ध कार्रवाई की जाए. लेकिन बलरामपुर पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई.

तीन पक्ष गए लखनऊ हाईकोर्ट

फिर जब मामला तीन पक्ष हाईकोर्ट गए तो एक-एक करके तमाम तह खुलने लगे. पहला पक्ष पवन कुमार कन्नौजिया डीएम अरविंद सिंह के ज्यूडिशियल ऑर्डर के ख़िलाफ़ और उनके ऊपर कार्रवाई ना करने के लिए हाईकोर्ट गया. दूसरा पक्ष, राजेश वर्मा, जो कि तत्कालीन लेखपाल थे, जिन्हें डीएम ने नैतिकता के आधार पर सस्पेंड कर दिया था और कुसुमा देवी की शिकायत (CRPC 156/3) पर अभियोग पंजीकृत किया गया था. वह राहत पाने के लिए हाईकोर्ट गए. हाईकोर्ट ने लेखपाल के मामले की सुनवाई के दौरान भी पुलिस की कार्य शैली पर नाराज़गी जाहिर की थी और राजेश को अंतरिम राहत देने का काम किया था. हाईकोर्ट ने पवन कन्नौजिया के रिट पर एक महीने आगे का डेट लगाते हुए उनकी सैलरी रिलीज़ करने का आदेश दिया. यानी सैलरी रोकने के मामले में स्टे दिया. वहीं, राजेश वर्मा को अंतरिम राहत प्रदान की, जिससे उनकी गिरफ्तारी ना हो सके और वह जांच में सहयोग करते रहे. कुसुमा देवी के रिट पर हाईकोर्ट ने सख्त लहज़ा अपनाया. तीसरा पक्ष, कुसुमा देवी जो कि आत्मदाह करने वाले युवक की विधवा हैं, वह पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए हाइकोर्ट गईं।

कुसुमा देवी के रिट पर हुआ एसआईटी का गठन 

कुसुमा देवी के रेट पर हाईकोर्ट ने आर्डर करते हुए कहा कि इस मामले में पुलिस की जवाबदेही और उसके जांच की प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं है. पुलिस की भूमिका उन्हें प्रथम दृष्टि संदिग्ध नजर आती है. कुसुमा देवी की सीबीआई जांच की मांग को नकारते हुए हाईकोर्ट ने अपनी निगरानी में एक एसआईटी जांच समिति के गठन का आदेश शासन को दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर रखा था कि इसमें आईजी स्तर का अधिकारी शामिल हो जो पूरे मामले की जांच करके रिपोर्ट हाईकोर्ट बेंच को सौंपेगा. हाईकोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग ने कार्यवाही करते हुए दो सदस्य के साथ समिति का गठन किया है. इस एसआईटी जहां समिति में जय नारायण सिंह, अपर पुलिस महानिदेशक, रेलवे सुरक्षा बल लखनऊ व रामप्रकाश, अपर आयुक्त, देवीपाटन मंडल को गृह विभाग द्वारा जिम्मेदारी सोप गई है.

बताया जाता है मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर करते हुए डीएम द्वारा दिए गए एफिडेविट व उसमें संलंग्न न्यायिक आदेशों को सही माना था. वहीं, बताया जाता है, डीएम के आदेशों से ही पीड़िता कुसुमा देवी को न्याय मिलने की उम्मीद को बल मिला. पीड़िता कुसुम देवी की रिट में की गई अपील और डीएम अरविंद कुमार सिंह द्वारा मजिस्ट्रेट जांच करवाने के पश्चात पारित किए गए. हाइकोर्ट और जिलाधिकारी न्यायिक आदेशों के आधार पर पीड़िता कुसुमा देवी को अब न्याय की उम्मीद जगी है. वहीं, संज्ञान में आया है कि शासन द्वारा सुझाए नामों पर हाईकोर्ट ने अभी मुहर नहीं लगाई है. हाईकोर्ट ने 12/ 06/ 2024 को रिट की सुनवाई करते हुए कहा था कि आप कुछ नामों की लिस्ट दें हम उनको तय करेंगे कि कौन कौन इस जांच समिति में शामिल होगा.

कुसुमा बोली भरण पोषण के लिए मिले हक़ और न्याय

पीड़िता कुसमा देवी ने हमसे बात करते हुए बताया कि जांच समिति का गठन किया गया है. इससे कहीं ना कहीं हमें न्याय की उम्मीद जगी है. उन्होंने कहा कि जब जांच पूरी होगी और सारे तथ्य सामने आएंगे तो कौन गलत था और कौन सही. इस बात का पता चल जाएगा. फिलहाल कुशमा देवी का कहना है कि उन्हें उनके पति के प्रति न्याय मिल जाए और उनके बच्चों के भरण पोषण के लिए वह प्लॉट जिसके कारण यह पूरी महाभारत हुई थी. इसके साथ ही दोषियों को सजा मिले. वहीं, इलाके के लोगों में यह मामला अभी भी चर्चा का विषय है. समय समय पर लोग इसकी चर्चा करते रहते हैं. अब देखना होगा कि आगे जांच में क्या क्या तथ्य सामने आते हैं

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Author: Nb Bharat News

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